गुप्त साम्राज्य के नोट्स - gupta samrajya in hindi
गुप्त साम्राज्य के नोट्स
गुप्त काल का समय काल
गुप्त वंश का संस्थापक
गुप्त काल या गुप्त वंश के संस्थापक श्री गुप्त के बाद उनका पुत्र घटोत्कच इस वंश का राजा हुआ था चंद्रगुप्त प्रथम ने महाधिराज की उपाधि धारण की थी गुप्त संवत का परावर्तन इन्होंने ही 319 से 320 में किया था
गुप्त काल में मध्य प्रदेश - गुप्त साम्राज्य के शासक
- चन्द्रगुप्त काल
- समुद्रगुप्त
- चन्द्रगुप्त दुतीय
- कुमार गुप्त प्रथम
- स्व्कंद गुप्त
प्रयाग प्रशस्ति के अतिरिक्त मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित एरण नामक स्थान से भी समुद्रगुप्त का लेख प्राप्त हुआ है जो खंडित अवस्था में है।।
समुद्रगुप्त की उपाधि
समुद्रगुप्त को पृथ्वी राघव आदि राघव से भी बढ़कर दानी कहा गया है इसलिए कि यह भी पता चलता है कि एरण प्रदेश [ जवलपुर उनका भोग नगर माना जाता था।
हरि सेन द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति के 13वीं 14 वी शाताब्धि में यह स्पष्ट जानकारी मिलती है कि समुद्रगुप्त अपनी दिग्विजय प्रक्रिया के प्रारंभ में सर्वप्रथम उत्तर भारत के तीन शक्तियों राजाओं अथवा नाग सेन आर्यावर्त का प्रथम युद्ध किया और उसने सभी को पराजित भी किया।।
जो शासन पराजित हुए थे उनमें नाग सेन नाग वंश के शासक थे पवैया ग्वालियर जिले में स्थित पदमा भैया महत्वपूर्ण शासक थे गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त का समकालीन शासक रूद्र सिंह तृतीय 348 से 378 ई था जो पश्चिम में मालवा गुजरात में काठियावाड़ का शासक था।
दुर्जनपुर विदिशा जिले के लेख से यह जानकारी मिलती है कि समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए उसका बड़ा पुत्र राम गुप्त शासक बना था यह जानकारी मालवा क्षेत्र के दो स्थान व भिल्सा से प्राप्त ताम्र मुद्राओं से होती है।
भिलसा से ताम्र सिक्के [ गरुड़ गुप्त वंश ]
भिलसा से ताम्र सिक्के प्रसिद्ध मुद्रा शास्त्री परमेश्वर लाल गुप्त को प्राप्त हुए थे जबकि और और से सागर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष वाजपेई को प्राप्त थे जिसमें एरण के सिक्के है वह गरुड़ का चित्र था गरुड़ गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह था।
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने नाग वंश
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने नाग वंश की कन्या कुबेर नाग से विवाह कर नागवंशी शासको से मित्रता की इसी कुबेरनाथ से प्रभावती गुप्त नामक एक कन्या का जन्म हुआ चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने वकाटकों से सहयोग लिए लेने के लिए अपने राजरोहण के उपरांत अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वक्त नरेश रूद्र सेन ज्योति से कर दिया
वाकाटक वंश उस समय आधुनिक महाराष्ट्र प्रांत में शासन करते थे कुछ समय बाद रुद्रसेना द्वितीय की मृत्यु हो गई और प्रभावती गुप्त वाकाटक राज्य की संरक्षाका बन गई क्योंकि उसके दोनों पुत्र थे इसी के शासनकाल में चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने शंखों को हराया उनके राज्य गुजरात व कट्ठीवाड़ा को अपने साम्राज्य में मिला लिया था
शक विजय के अभिलेख
चंद्रगुप्त द्वितीय के तीन अभिलेख पूर्वी मालवा से प्राप्त हुए जिसे शक विजय की सूची मिलती है इनमें प्रथम अभिलेख बिल्स के समीप उदयगिरि पहाड़ी से मिलता है जो उसके संधि विग्रहक वीर सेन साहब का है दूसरा अभिलेख भी उदयगिरि से मिला है जो कि उसके सामंत संकलिन महाराज का है
जबकि तीसरे में पदाधिकारी का उल्लेख है जो सैकड़ो युद्धों का विजेता था उसके शासनकाल में इस प्रदेश का भूभाग उज्जैन विद्या का प्रमुख केंद्र था।
यहां चंद्रगुप्त से तात्पर्य चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य से था सूची के अनुसार उसके दरबार में नव विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी जिसे नवरत्न नाम दिया गया इसका नेतृत्व कालिदास कर रहे थे इसी के शासनकाल में उज्जैनी को मगध की दूसरी राजधानी के रूप में विशेष रूप से दर्जा दिया गया था जिसे शीघ्र ही विभव तथा समृद्धि में पाटलिपुत्र का स्थान ले लिया।
गुप्त काल के महत्वपूर्ण अभिलेख
- मंदसौर अभिलेख
- सांची अभिलेख
- साक्षी अभिलेख
- उदयगिरि गुफा लेक
- तुमने अभिलेख।
- सुपिया का लेख
- ऐरन अभिलेख
मंदसौर अभिलेख या भूभाग प्राचीन पश्चिमी मालवा का हिस्सा था जिसका नाम दशपुर भी रखा गया है इसके विक्रम संवत 529 की तिथि दी गई है इस लेख प्रशिष्टि के रूप में है जिसकी रचना संस्कृत विद्वान भट्टी ने की थी इस लेख में इस राजा के राज्यपाल बंधु वर्मा का उल्लेख मिलता है जो वहां शासन करता था इस लेख में सूर्य मंदिर के निर्माण का भी उल्लेख किया गया।
सांची अभिलेख
सांची अभिलेख यहां से प्राप्त लेख गुप्त संवत 131 से 450 ई का है इसमें हरि स्वामी द्वारा यहां के आर्य संघ को धन-धन्य ने दिए जाने का जिक्र किया गया है
उदयगिरि गुहालेख
उदयगिरि गुहालेख गुप्त संवत 106 या 425 ई का एक जैन अभिलेख माना जाता है इसमें शंकर नामक व्यक्ति द्वारा इस स्थान में पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित किए जाने का विवरण है।
तुमने अभिलेख।
यह अभिलेख अशोकनगर जिले में है यहां से गुप्त वंश 116 या 435 ई का लेख मिलता है इसमें राजा को शरद कालीन सूर्य की भांति बताया गया है कुमारगुप्त के शासनकाल के समय पुष्प मित्र जाति के लोगों को शासन नर्मदा नदी के मुहाने के समीप में काल में था
कुमार गुप्त प्रथम
इस राज्य मध्य प्रदेश के हिरण प्रदेश पूर्व मालवा पर भी कुमार गुप्त प्रथम का शासन स्थापित था क्योंकि अभिलेख से प्राप्त क्रांति पदाधिकारी की सूची में इस एरण प्रदेश के शासन घटोत्कच गुप्त का नाम भी ज्ञात होता है कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु बाद गुप्त साम्राज्य की भाग डोर उसके पुत्र स्व्कन्द्गुप्त के हाथों में आ गई थी।
सोफिया का लेख
रीवा जिले में स्थित सोफिया नामक स्थान का यह लेख मिला है इसमें गुप्त संवत 141 से 460 ई की तिथि लिखी है इसमें गुप्त की वंशावली घटोत्कच के समय से मिलती है तथा गुप्त वंश को घटोत्कच कहा गया है।
ऐरण अभिलेख
तोरन मान का 12 प्रतिमा ऐरण अभिलेख व मिहिर कुल का ग्वालियर अभिलेख घोड़े की उपस्थिति दर्शाता है
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