मध्य प्रदेश में राजपूत काल का इतिहास - madhya pradesh mei rajput kaal ka itihas in hindi
मध्य प्रदेश में राजपूत काल का इतिहास
चन्द्रगुप्त प्रथम [ मध्य प्रदेश में गुप्त काल ]
गुप्त सम्राटों में चंद्रगुप्त प्रथम का सम्बन्ध कुछ भाग मध्य प्रदेश का इलाहाबाद से लगा है इसके साथ में है चंद्रगुप्त प्रथम के पश्चात उत्तराधिकारी उसके पुत्र ने अपने साम्राज्य की सीमा फैलाने का प्रयत्न किया इलाहाबाद प्रयाग में समुद्रगुप्त की दक्षिण पंथ विजय का वर्णन भी दिया गया है वर्णन के अनुसार
- कौशल के राजा महेंद्र को
- महाकालअंतर के राजा बेगराज को
- केरल में मंद राज्य बिष्टपुर को
- महेंद्र गिरी कोठुर को स्वामी डेट चप्पल को दामन
- अब मुक्ति के नीलराज
- वेंगी के हस्तीवर्मन
- पालक्म के राजा उग्रसेन
- देव राष्ट्र के कुबेर
- कुसली के राजा धनजय को पराजित कर सिंहासन पर बैठे।
समुद्र गुप्त
समुद्रगुप्त मध्य प्रदेश के पूर्वी और दक्षिण भाग में होता हुआ उड़ीसा में पहुंच गया इसके पश्चात इलाहाबाद में आर्य व्रत के नौ राज्यों को अपने राज्य में मिलाया उसने गणपति नाग तथा नाग सेन मध्य भारत के नागवश से संबंधित थे
कुछ गणराज्य ने भी समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की थी जिसमे कुछ महत्वपूर्ण राज्य थे
- यह गणराज्य मालवा
- अर्जुननयन
- योध्या मद्रक
- अभीर
- प्रजुर्न
- सन्कानिक
- काक और
- खरपारिक थे
अहीरों की एक बस्ती मध्य प्रदेश में थी जिसे उनके नाम पर आज भी अहिरवार कहा जाता है यह स्थान विदिशा और झांसी के बीच में है यह स्थान संभ्यता वही प्रदेश है जिनका प्रयाग प्रशिस्ती में उल्लेख है सनकालिक विदिशा के पास ही बसे थे इसी प्रकार खारपारीको को दमोह जिले में रखा गया है।
समुद्रगुप्त के एरण से प्राप्त अभिलेख में एरण उसके समय में स्वाभिक नगर था इस तरह से समुद्रगुप्त ने मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग तथा नर्मदा के उत्तरी सीमा तक अपना राज्य स्थापित कर लिया था उसकी पुष्ट्री बमनाला तथा साकोर से प्राप्त समुद्रगुप्त के सिक्कों से है।
राम गुप्त
गुप्त इतिहास में एक कास्य नामक शासन के सिक्के विदिशा तथा साकोर से प्राप्त हुए है समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी राम गुप्त हुआ जो चन्द्रगुप्त द्वितीय का भाई था विशाख दत कृत्य देवी चंद्रगुप्त नाट्य सभा मध्य प्रदेश के विदिशा तथा एरर से राम गुप्त के सिक्के मिलें है शंकु द्वारा पराजित होकर समुद्रगुप्त ने अपनी ध्रुव देवी को एक राजा के हाथों स्वीकार कर लिया था किंतु उसके छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय शंकर राजा की हत्या के बाद राम गुप्त की हत्या कर उसकी विधवा पत्नी से शादी कर साम्राज्य का आधिकारिक हो गया इन सिक्कों से ऐसा प्रतीत होता है कि राम गुप्त का विदिशा तथा एरर से संबंध रहा है।
चंद्रगुप्त द्वितीय 366 ई से 67
राम गुप्त के पश्चात चंद्रगुप्त द्वितीय 366 ई से 67 ई के लगभग मगध के आसन पर बैठा चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा विदिशा क्षेत्र में किए गए अभियान का पता उदयगिरि गुफा लेख से चलता है विदिशा के निकट सांची के स्तूप से प्राप्त अभिलेख में आगरा का देव द्वारा काकनाद बोत सांची में महावीहार के आर्य संघ को दान देने का उल्लेख है।
पूर्वी मालवा में चंद्रगुप्त के एक मंत्री एक सामंत तथा एक सैनिक अधिकारी की उपस्थिति उसके दीर्घकालीन अभियान की ओर संकेत करती है मालवा क्षेत्र के अतिरिक्त पटअन बमनासा साकोर शिवानी सीहोर तथा हरदा से भी सिक्के मिले हैं इसे उनके मध्य प्रदेश में साम्राज्य का विस्तार का पता चलता है
कुमार गुप्त 415 ई के लगभग मध्य राज्य शासन पर बैठा।
उसके अभिलेखों में मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में कुछ राज्यपाल और सामंतों का पता चलता है गुना जिले के तुमेंन शिलालेख से तुमवन के शासक घटोत्कच गुप्त, मंदसौर से प्राप्त अभिलेखों में दशपुर में सेनापति बंधु वर्मा का शासन करने का उल्लेख है
कुमारगुप्त के कुछ सिक्के पूर्व निर्माण जिले के बमनाल में मिले हैं इन सिक्कों में भी मध्य प्रदेश में उनके साम्राज्य विस्तार का पता चलता है
स्व्कंद गुप्त
कुमार गुप्ता के पश्चात उसका उत्तराधिकारी स्व्कंद गुप्त हुआ था मध्य प्रदेश में स्मारक स्तंभ लेख तथा सकोर दमोह जिले से प्राप्त सोने के सिक्कों में स्व्कुंद गुप्त के मालवा विन्ध्य प्रदेश तथा महाकौशल क्षेत्र पर अधिकार का पता चलता है स्कंद गुप्त गुप्त के पश्चात गुप्त वंश में कोई प्रतापी सम्राट नहीं हुआ।
गुप्त वंश की शक्ति छीन होती जा रही थी भानु गुप्त के ईरान अभिलेख से ज्ञात होता है कि उनका उत्तराधिकारी गोपराज एरण के युद्ध में मर गया था यह युद्ध नरेश तोरमाण के साथ लड़ा गया जिसे आक्रमण कर इस प्रदेश को जीत लिया था।
गुप्त वंश से सम्बंधित जानकारी
1;- मध्य प्रदेश में राजपूत काल के समय ही गुर्जर प्रतिहार वंश कलचुरी वंश चंदेल वंश और परमार वंश मालवा में रहा है
2;- गुर्जर प्रतिहार वंश के संस्थापक नागभट्ट प्रथम थे जिनकी राजधानी पहले कन्नौज और दूसरी उज्जैन थी
3;- गुप्त वंश में नागभट्ट राजा राजभद्र मिहिर भोज महिपाल वसराज नागभट्ट द्वितीय आदि प्रमुख शासक थे
4;- मिहिर भोज का उल्लेख ग्वालियर सागर ताल अभिलेख से मिलता है
5;- मिहिर भोज के समय अरबी यात्री सुलेमान भारत आया था
6;- इस वंश के समान ही कलचुरी ,चंदेल व परमार वंश की स्थापना की थी
7;- काव्य शास्त्री राजशेखर इन्हीं के दरबार में थे उनकी प्रमुख रचना काव्य मीमांसा कर्णपूर्मजुर बाल भारत थे
8;- चंदेल वंश चंदेल वंश के संस्थापक नन्नुक या चंद्र वर्मा थे जिनकी राजधानी पहले खजुराहो दूसरी कालिंजर इसे जय शक्ति शासन के नाम से जिजकभुक्ति वंश भी कहा जाता है
9;- खजुराहो में मंदिरों का निर्माण चंदेल वंश के दुवारा करवाया था
10 ;- इसके प्रमुख शासन में यशोवर्मन जिसने विष्णु मंदिर , लक्ष्मण मंदिर, चतुभुज मंदिर का निर्माण करवाया था
11;- राजा धंग देव जिसने पार्श्वनाथ विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया
12;- कालिंजर को राजधानी बनाया धंग देव जिसने चित्रगुप्त जगदंबा मंदिर का निर्माण करवाया
13 ;-विद्याधर इन्होंने महमूद गजनबी को हराया था अंतिम अंतिम शासक हरि बर्मन थे
14 ;- कलचुरी वंश के संस्थापक को कोक्क्ल प्रथम थे उनकी राजधानी त्रिपुरा थी
15 ;- इनका शासन क्षेत्र कटनी जबलपुर महाकौशल क्षेत्र था
16;- राजा कोक्कल का विवाह चंदेल राजकुमारी हटा से हुआ था
17 ;-अमरकंटक के मंदिरों का निर्माण इन शासको ने करवाया था
18 ;- गंग्देय राजा भोज से युद्ध में पराजित हुआ था इनका शासन कर्ण द्वारा अमरकंटक का कर्ण मंदिर का निर्माण करवाया गया था कर्ण त्रि सिंगा पति या लक्ष्मी कर्ण या उज्जैन या मालवा विजेता भी कहा जाता है
मालवा का परमार वंश
1;-मध्य प्रदेश में मालवा का परमार वंश की स्थापना 800 से 1327 ई में मानी जाती है
2;- मालवा के परमार वंश के संस्थापक कृष्ण राज उपेंद्र के नाम से भी जाना जाता है
3;- जिसकी राजधानी धार और उज्जैन थी
4;- शासक में श्री हर्ष को वास्भीतिवक संस्थापक माना जाता है
5;- श्री हर्ष परमार वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है इसमें राष्ट्रकूट नरेश खोतिक को हराया था
बागपती मूंज
1;- मांडू में मुंज सागर झील का निर्माण कराया था इसने कलचुरी हूणों चालुक्य पर जीत हासिल की थी
2;- सिंधु राज इसकी विजय का वर्णन नव सहित चरित्र में मिलता है
राजा भोज
3;- राजा भोज का शासन 1000 से 1055 के बीच में था
4;- उनका जन्म उज्जैन में हुआ था
5;- उनकी राजधानी धार नगरी धार को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया था
6;- उन्हें कविराज विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है
7;- राजा भोज की प्रमुख रचनाओं में बहुत प्रबंधन सरस्वती कंठ भ्रमम सिद्धांत संग्रह समरागण सूत्रधार आदि उनकी रचनाएं हैं
8;- कलचुरी शासक गंगदेव को हराया था
9;- उड़ीसा शासक इंद्रनाथ को भी इन्होंने पराजित किया था
10 ;- उनके प्रमुख दरबारी धनपाल रचना तिलक मंजूरी इसके बाद भास्कर भट्ट दामोदर मिश्र का टिककर आदि प्रमुख थे
11;- मध्य भारत का सोमनाथ भोजपुर मंदिर का निर्माण रायसेन में राजा भोज ने करवाया था
हेलो दोस्तों इस लेख में हमने आपको मध्य प्रदेश में राजपूत काल से सम्बंधित जानकारी आपके सामने राखी है जिससे आपको मध्य प्रदेश में राजपूत काल का इतिहास -madhya pradesh mei rajput kaal ka itihas in hindi मालवा का परमार वंश कुमार गुप्त 415 चंद्रगुप्त द्वितीय 366 से सम्बन्धित जानकारी को देखेंगे