बघेलखंड रियासत - Baghel Rajput history in Hindi
बघेलखंड क्षेत्र के कुछ भागों पर बघेल राजपूत का अधिकार था जो गुजरात के चालूक्य या सोलंकिय के वंशज होने का दावा करते थे इस वंश का पहला ज्ञात शासक घवल था।
जिनके पुत्र अर्णोराज को हम पाली ग्राम जिसे व्यग्र पाली कहा जाता है दे दिया गया था इसी से इस वंश का नाम विग्रह पाली है वह बघेल नाम पढ़ा उसके शासन काल में में सन 1299 में अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण किया
इस समय कर्ण का वंशज कालिंजर आया तथा उसके वंशजों ने लोधी जमींदार से उत्तर प्रदेश पर अधिकार प्राप्त कर लिया था . इस वंश के शासको में मीरा देव वहां के थे राजा सालीवान के पुत्र वीरसिंह देव ने दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी से मित्रता स्थापित की थी सन 1515 के लगभग गोंड शासक अमनदास को शरण दी
- उसने नागौद सतना जिले के परिहार राजा को पराजित कर नारोगढ़ पर अधिकार कर लिया था
- कमारों से बांधवगढ़ का किला छीनकर शहडोल जिले में अधिकार कर रतनपुर के कलचुरी शासक पर कर लगाया था
- उसके शासनकाल में बघेल वंश का विस्तार हुआ और बघेल बंश का उदय भी इसी के काल में माना जाता है
वीरभान सन 1540 से 1555 के बीच का समय
वीर सिंह का उत्तराधिकारी - वीरभान सिंह
वीर सिंह का उत्तराधिकारी वीरभान सिंह ने हुमायूं की सहायता की थी शेरशाह ने सत्ता संभालने के पश्चात बघेलखंड पर आक्रमण किया और उसका पुत्र जलाल खान सन 1545 में रीवा आया और वही रुका रहा था वीरभान ने कालिंजर के दुर्ग में शरण ली थी सन 1555 में वीरभान की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र रामचंद्र उत्तर अधिकारी हुआ
रामचंद्र बघेल [ Baghel Rajput history in Hindi ]
राम चन्द्र बघेल के शासन मे प्रथम काल में इब्राहिम लोदी ने आक्रमण किया परंतु रामचंद्र ने उसे बंदी बना लिया परंतु उसने उसे सम्मानपूर्वक व्यवहार किया अकबर ने अपने शासनकाल के छठे वर्ष सन 1564 में जलाल खान को संगीतकार तानसेन को लाने के लिए भेजा क्योकि उस समय वे प्रसिद्ध गायक थे और अकबर चाहता था के तानसेन उनके दरबार में नवरत्नों में शामिल रहे .
रामचंद्र अकबर की मांग का विरोध नहीं कर सका तानसेन को मुगल दरबार में भेज दिया 1 जुलाई 1569 में कालिंजर का किला अकबर को सौंप दिया गया और इसके बाद अपने युवराज वीरभद्र को शाही दरबार में भेज दिया सन 1592 में रामचंद्र की मृत्यु हो गई
वीरभद्र देव
- वीरभद्र देव ने 1592 से 1593 ई तक
- विक्रमादित्य ने सन 1593 से 1624 तक
- अमर सिंह 1624 से 1640 तक
- अनूप सिंह 1640 से 1660 तक
- भावसिंह 1660 से 1669 तक
- अनिरुद्ध सिंह 1690 से 1700 ई तक
- अबभूत सिंह 1700 से 1755 ई तक
- अजीत सिंह 1755 से 1809 ई तक
- जयसिंह क 1809 से 1833 ई तक
- विश्वनाथ सिंह 1833 से 1854 तक
- रघुराज सिंह 1854 से 1880 तक शासन किया
- इस वंश का अंतिम शासक मार्तंड सिया था
- जिसके राज्य का आजादी के पश्चात भारतीय संघ में विलय किया गया था
- बघेलखंड रियासत के संस्थापक बीसलदेव बघेल व बिल देव थे
- 1236 ईस्वी में बघेलखंड राज्य की स्थापना की थी
बघेलखंड रियासत
- बघेलखंड रियासत का शासन रीवा,
- सोहवाल सतना
- उचेहरा
- सतना
- बांधवगढ़
- मुकुंदपुर
- सतना
- चौखंडी
- रीवा
बघेलखंड के प्रमुख शासन
- बघेलखंड के प्रमुख शासक राजा व्यग्र देव
- राजा व्यग्र देव इस वंश के आदि पुरुष माने जाते हैं बांधवगढ़ किले का निर्माण इन्हीं ने करवाया था।
वीर भानु
- 1539 ईस्वी में वीर भानू ने हुमायूं से युद्ध में मदद की थी
- इस कारण मुगल शासको ने उसे कर मुक्त रखा।
रामचंद्र रामचंद्र
- 1555 ईस्वी में अकबर के समकालीन शासक थे
- उनके दरबारी संगीतकार तानसेन 1564 ईस्वी में अपनी राजधानी गहोरा से बांधवगढ़ स्थानांतरित की थी
रघुराज सिंह
- रघुराज सिंह 1857 की क्रांति के समय शासक थे
- महाराज गुलाब सिंह 1934 ईस्वी में इन्होंने पवई रोलर लागू किए थे
- 1938 ईस्वी में जुबली जानाना अस्पताल की स्थापना रीवा में की थी
मर्दंड सिंह
- मर्दंड से भारत विलय के समय रीवा राज्य के शासक थे
- उन्हें भारत का पहला सफेद टाइगर मोहन मिला था।
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